करणी माता की जीवनी | Karni Mata Biography in Hindi

Karni Mata Biography, जिन्हें चारण समाज की कुलदेवी देशनोक की करणी माता के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान की महान संत और देवी के रूप में पूजी जाती हैं। वे शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं। उनके जीवन और उपदेश आज भी करोड़ों भक्तों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। करणी माता के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी घटनाएँ और लोककथाएँ राजस्थान और पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं।

Karni Mata का जन्म

करणी माता का जन्म 2 अक्टूबर 1387 को जोधपुर जिले के सुवाप गाँव (वर्तमान जोधपुर) में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहाजी चारण और माता का नाम देवकी था। चारण समाज में जन्मी करणी माता बचपन से ही असाधारण शक्ति और धार्मिक प्रवृत्ति वाली थीं। कहा जाता है कि जन्म से ही उनमें देवी शक्ति के लक्षण दिखाई देते थे।

जीवन और विवाह

करणी माता का विवाह देवी करणी का मानने वाले दिपाजी चारण से हुआ। लेकिन करणी माता सांसारिक जीवन की बजाय भक्ति और सेवा में अधिक रूचि रखती थीं। विवाह के कुछ समय बाद ही उन्होंने अपने पति को समझाकर उनकी दूसरी शादी अपनी बहन गुलाब से करवाई और स्वयं ब्रह्मचारिणी जीवन अपनाया।

चमत्कार और लोककथाएँ

करणी माता के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी कथाएँ प्रचलित हैं। उनमें से एक सबसे प्रसिद्ध कथा यह है कि जब उनके एक भक्त का पुत्र मर गया, तो उन्होंने उसे चूहे के रूप में पुनर्जन्म दिलवाया। तभी से करणी माता को मृत्यु और जन्म पर अधिकार रखने वाली देवी माना जाने लगा। इसी कारण राजस्थान के डेश्नोक करणी माता मंदिर में हजारों चूहे रहते हैं और उन्हें “काबा” कहा जाता है। भक्त मानते हैं कि ये चूहे करणी माता के आशीर्वाद से पुनर्जन्म पाए हुए उनके भक्त हैं।

Karni Mata Biography in Hindi - करणी माता की पूरी जीवनी।
Karni Mata Biography in Hindi – करणी माता की पूरी जीवनी। (Image Credit – Wikipedia)

Karni Mata का मंदिर

बीकानेर जिले के डेश्नोक में स्थित करणी माता मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसे “चूहों का मंदिर” भी कहा जाता है। यहाँ चूहों को देवी का स्वरूप मानकर दूध, अनाज और मिठाइयाँ खिलाई जाती हैं। कहा जाता है कि अगर कोई भक्त सफेद चूहे का दर्शन कर ले, तो उसकी मनोकामना पूरी होती है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते हैं।

राजाओं से संबंध

करणी माता ने कई राजवंशों को आशीर्वाद दिया। बीकानेर और जोधपुर की राजघरानों को उन्होंने मार्गदर्शन और सुरक्षा का आशीर्वाद प्रदान किया। कहा जाता है कि उनकी कृपा से ही बीकानेर राज्य की नींव मजबूती से खड़ी हुई।

Karni Mata का निधन

करणी माता ने 23 मार्च 1538 को अपने सांसारिक शरीर का त्याग किया। मान्यता है कि वे सजीव ही अपने भक्तों के बीच से अंतर्धान हो गईं। उनके जाने के बाद भी उनकी शक्तियाँ और आशीर्वाद भक्तों के साथ बने हुए हैं।

निष्कर्ष

Karni Mata Biography – करणी माता सिर्फ एक धार्मिक संत नहीं थीं, बल्कि वे शक्ति, त्याग और भक्ति की प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा और भक्ति से ही जीवन सफल होता है। आज भी डेश्नोक मंदिर में लाखों श्रद्धालु उनके दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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